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सरकार ने खरीफ फसलों के MSP में 4-9% की बढ़ोतरी की,जानें MSP क्या है और कृषि क्षेत्र में इसका महत्त्व

Aastha Singh

देश में बढ़ते हुए इन्फ्लेशन की चिंताओं के बीच भारत ने खरीफ फसलों के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस 4-9% बढ़ा दिया है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए 100-523 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गयी है। ज्वार और सोयाबीन में पिछले सीजन की तुलना में 8% से अधिक की सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई। इसके बाद तिल की कीमतों में 7% की वृद्धि हुई। कुल मिलाकर, तिल में सबसे ज्यादा 523 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि देखी गई।

धान के एमएसपी में 100 रुपये प्रति क्विंटल यानी पिछले साल की कीमत से 5.5% की बढ़ोतरी की गई थी, जिसकी बुवाई पहले ही शुरू हो चुकी है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs) द्वारा अरहर (अरहर), उड़द और मूंगफली जैसी फसलों में 300 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि देखी गई।

इन्फ्लेशन के जोखिम पर किसानों को दिया जा रहा मुआवजा

Times of India

खरीफ सीजन के लिए सपोर्ट प्राइस आमतौर पर जून की शुरुआत में घोषित किए जाते हैं और मूंगफली, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे ऑयल सीड्स के साथ धान, ज्वार, बाजरा और मक्का जैसी प्रमुख फसलों को कवर करते हैं। मूंग और उड़द जैसी दालें भी इसके अंतर्गत कवर की जाती हैं।

लेकिन परेशानी ये है की इन सब प्रमुख फसलों की इन्फ्लेशन के कारण पहले से ही कीमतें बढ़ी हुई हैं। ऐसे में सरकार का मिनिमम सपोर्ट प्राइस तय करना एक मुश्किल काम रहा होगा। कृषि क्षेत्र में बढ़ती हुई इनपुट लागत जैसे की कीटनाशकों, फ़र्टिलाइज़र, कृषि उपकरणों, मानव श्रम और सिंचाई जैसे प्रमुख इनपुट कुल मिलाकर लागत में लगभग 55-60% योगदान करते हैं। हालाँकि फ़र्टिलाइज़र के महंगे होने के प्रभाव का एक भौतिक हिस्सा सरकार द्वारा फ़र्टिलाइज़र सब्सिडी में वृद्धि के माध्यम से कवर किया गया है। फिर भी, कीटनाशकों जैसे अन्य कृषि इनपुट्स की कीमतों में 5-6% की वृद्धि होने की उम्मीद है। फ्यूल की बढ़ती कीमतों और कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ, मशीन श्रम की लागत भी बढ़ने की उम्मीद है।

कृषि उत्पादों की उच्च लागत के लिए किसानों को उचित मुआवजा देने के लिए सपोर्ट प्राइस को इस वर्ष बढ़ाने की आवश्यकता ज़रूरी थी। लेकिन रिस्क यह है की ऐसा करने से, सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था में पहले से ही बढ़े हुए फूड इन्फ्लेशन को बढ़ावा देने का जोखिम उठाना पड़ सकता है।

मिनिमम सपोर्ट प्राइस क्या है?

किसानों के लिए MSP एक गारंटी मूल्य की तरह है जिसके आधार पर भारतीय सरकार किसानों से फसल खरीदती है, भले ही वे फसल किसी भी मूल्य पर उगाये गए हों। MSP हमारे देश की कृषि मुल्य नीति (Agricultural pricing policy) का एक अहम् हिस्सा है। जब हमारे देश में कुछ फसलों जैसे कि खरीफ फसल का बीजारोपण का कार्य शुरू होने वाला होता है, तो कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेज या CACP के सुझाव पर भारत सरकार MSP का निर्धारण करती है। यह किसी भी फसल के लिए मिनिमम प्राइस है जिसे सरकार लाभकारी और समर्थन के योग्य मानती है।

इससे पहले कि कृषि उत्पादों के मूल्य में गिरावट हो, न्यूनतम समर्थन मुल्य या MSP को निर्धारित करके सरकार किसानो को होने वाले घाटे से बचा लेती है। MSP का मुख्य उद्देश्य किसानों को अनाज की बिक्री में होने वाले संकटों से बचाना है और पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन के लिए अनाज को सिक्योर करना है।

यदि बंपर उत्पादन और बाजार में भरमार के कारण किसी अनाज का मार्किट प्राइस एमएसपी से कम हो जाता है, तो सरकारी एजेंसियां ​​किसानों द्वारा दिए जाने वाले अनाज की पूरी मात्रा को घोषित न्यूनतम प्राइस पर खरीद लेती हैं।

मिनिमम सपोर्ट प्राइस के अंतर्गत आने वाले फसल

यह सिलसिला 1966-67 में गेहूं के साथ हुआ था और अब इस समय 23 तरह के अनाजों जिनमें 5 प्रकार की दाल – चना, उरद, मुंग, मसूर, अरहर।

7 तरह का अनाज – रागी, जोवार, बाजरा, जौ, गेहूं, धान, मक्का। और 8 प्रकार के ऑयल सीड्स – मूंगफली, तोरी, सोयाबीन, सरसों, तिल, कुसुम (safflower), nigerseed, सूर्यमुखी तेल के MSP की घोषणा की जाती है।

खेती को लाभकारी बनाने के उद्देश्य से सरकार ने वर्ष 2018-19 से फसलों के लिए उनकी उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत अधिक एमएसपी तय करने की घोषणा की थी। सीएसीपी द्वारा नयी एमएसपी A2+(FL) पर तय की जाती है जहां Cost A2 में किसान द्वारा बीज, उर्वरक, कीटनाशक, किराए के श्रम, ईंधन, सिंचाई आदि में पट्टे पर दी गई भूमि सभी लागतें शामिल हैं और FL अवैतनिक पारिवारिक श्रम की लागत (value of unpaid family labour) है।

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