जामा मस्जिद बुरहानपुर 
Indore-Hindi

जामा मस्जिद बुरहानपुर - देश की एकमात्र मस्जिद जहाँ की दीवारों पर अरबी और संस्कृत के शिलालेख हैं

1588 में राजा अली खान द्वारा बनायी गयी बुरहानपुर जामा मस्जिद बिना किसी संघर्ष के सह-अस्तित्व का उदाहरण है।

Aastha Singh

मध्य प्रदेश की विरासत शानदार है जहाँ स्वर्णिम भारत के सम्राटों द्वारा सौंपे गए अनेक शाश्वत सौंदर्य स्थापित हैं। राज्य के हर नुक्कड़ और कोने पर, पर्यटकों को किलों, महलों, संग्रहालयों जैसे वास्तुशिल्प चमत्कारों देखने को मिलते हैं जिन्हे भारत में कहीं और देखना मुश्किल है। मध्य प्रदेश को कई शासकों ने देखा और जीता है। गुप्त से लेकर राजपूत से लेकर मुगल तक मध्य प्रदेश आए बादशाहों ने इस जमीन पर अपनी छाप छोड़ी है। बादशाहों के स्वर्णिम शासनकाल ने इस भूमि की विरासत को आगे बढ़ाया है और सुंदर इमारतों के रूप में हमे सुरुचिपूर्ण वास्तुकला से नवाज़ा है।

शानदार किलों, महलों और संग्रहालयों के इस सूची में हम आज बात करेंगे मध्य प्रदेश के एक कम ज्ञात शहर बुरहानपुर की जो इंदौर से लगभग 200 किमी दूर है। बुरहानपुर में भी जामा मस्जिद नाम से एक मस्जिद है, जिसकी दीवारों पर अरबी और संस्कृत शिलालेख हैं। 1588 में राजा अली खान द्वारा बनायी गयी यह छतरहित मस्जिद भारत में एकमात्र ऐसी मस्जिद है जिसमें दो प्राचीन भाषाओं में शिलालेख हैं।

प्राचीन भाषाओं का समागम,भारत की धर्मनिरपेक्षता की गवाही

जामा मस्जिद बुरहानपुर

जामा मस्जिद का निर्माण फारूकी शासन में शुरू हुआ और फारूकी नेता आदिल शाह के निधन के बाद भी बहुत लंबे समय तक चला। इसके बाद, बादशाह अकबर ने मस्जिद के काम की देखरेख की और उसे पूरा किया। मस्जिद के अग्रभाग में दो मीनारों द्वारा अलग किए गए 15 मेहराब हैं। इसे बनाने में मांडू से एक्सपोर्ट किए गए काले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। फिर भी जो सबका ध्यान आकर्षित करता है वह है प्रार्थना कक्ष का दक्षिणी छोर, जहां संस्कृत शिलालेख हैं जो हिंदू संवत कैलेंडर के अनुसार खगोलीय स्थिति, तिथि और वर्ष का उल्लेख करते हैं। मक्का की दिशा की ओर मुख वाली इस मस्जिद में 17 मिहराब हैं।

अरबी और संस्कृत शिलालेख

मिहराबों में से एक में एक अरबी शिलालेख है जिसमें कुरान के छंदों के साथ अरबी में संरक्षक का उल्लेख है जो निर्माण के वर्ष का हवाला देते हैं। इस मिहराब के सुलेखक, मुस्तफा का नाम भी यहाँ अंकित है। फिर भी जो सबका ध्यान आकर्षित करता है वह है प्रार्थना कक्ष का दक्षिणी छोर, जहां संस्कृत शिलालेख हैं जो हिंदू संवत कैलेंडर के अनुसार खगोलीय स्थिति, तिथि और वर्ष का उल्लेख करते हैं।

जामा मस्जिद बुरहानपुर

इसके अलावा, अकबर द्वारा फारसी में एक छोटा लेख भी यहाँ की दीवारों में से एक में पाया जाता है। अकबर जब 1601 में बुरहानपुर आये तो उन्होंने इस लेखन को यहाँ पर जोड़ा। पहाड़ी किले असीरगढ़ की विजय के बाद मोहम्मद मासूम ने इसे सुलेखित किया था।

प्राचीन भाषाओं का यह उत्कृष्ट समागम भारत की धर्मनिरपेक्षता की कहानी बयान करता है। प्राचीन शासकों ने भारत को शिष्टाचार (तहज़ीब) के एक संस्थान में बदल दिया, और देश का सांप्रदायिक सौहार्द इतना आदर्श और अनुकरणीय था जिसे हम यहाँ की ऐतिहासिक संरचनाओं में बखूबी देख सकते हैं। बुरहानपुर की जामा मस्जिद बिना किसी संघर्ष के सह-अस्तित्व का उदाहरण है। मुगल वास्तुकला की सुंदरता के अलावा, यह गौरवशाली संरचना सद्भाव का महत्वपूर्ण संदेश देती है।

दी हेरिटेज लैब - से इनपुट के साथ

To get all the latest content, download our mobile application. Available for both iOS & Android devices. 

13-km elevated flyover to link old and new Lucknow soon? Details

Bengaluru-Lucknow weekly special train service extended till Nov 7

What’s next for Uttar Pradesh after Lucknow’s ABC programme success?

Lucknow's Indira Gandhi Planetarium reopens with India's FIRST 3D tech

Lucknow to welcome Vault by Virat Kohli, the city's largest gym

SCROLL FOR NEXT