Lucknow

जानिये लखनऊ से 55 किमी दूर स्थित भव्य ‘महमूदाबाद किले’ के समृद्ध लेकिन जटिल इतिहास के बारे में

Aastha Singh

उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से एक है जो सौंदर्य की दृष्टि से भारत और इसके समृद्ध इतिहास को परिभाषित करता है। यह वह प्राचीन भूमि है जहां महान संतों का उदय हुआ, धर्मों का विकास हुआ और भारत के दो महान महाकाव्य ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ यहां से प्रेरित हुए हैं। प्रत्येक प्रगतिशील सदी के साथ, राज्य ने विभिन्न धर्मों को स्थान देकर भारत की धर्मनिरपेक्षता की पुष्टि की है।

किलों और महलों का जब भी ज़िक्र होता है तो हमारे ख़्याल में सबसे पहले राजस्थान के स्थान अधिक आते हैं। लेकिन आज हम आपको लखनऊ से 55 किलोमीटर दूर महमूदाबाद तहसील में स्थित ‘मेहमूदाबाद किले’ के इतिहास और प्रसांगिकता का दौरा कराएंगे।

महमूदाबाद किले ने 1857 के युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

महमूदाबाद एस्टेट (Mahmudabad Estate) की स्थापना 1677 में इस्लाम के पहले खलीफा के वंशज ‘राजा महमूद खान’ (Raja Mehmood Khan) ने की थी। यह कोठी 20 एकड़ के परिसर का हिस्सा है और कोठी अवध महल वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है, और पूरे मुगल काल में और बाद में ब्रिटिश कोलोनियल युग के दौरान महमूदाबाद के शासकों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और आवासीय परिसर के रूप में कार्य किया। महमूदाबाद किले ने 1857 के युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उस समय अंग्रेजों द्वारा कोठी को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया था।

महमूदाबाद किला और समय का फेर

इसके तुरंत बाद, मूल प्लिंथ का उपयोग करके इमारत का पुनर्निर्माण किया गया था। आज कोठी एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है। यह कई मजलिसों और जुलूसों का पारंपरिक स्थल है, और यह साइट उर्दू और अरबी भाषाओं के सर्वश्रेष्ठ पुस्तकालयों में से एक है, और साहित्य, कला और कविता के विद्वानों की मेज़बानी करती है।

लेकिन समय की आपाधापी के चलते परिस्थितियों का ऐसा रुख हुआ की किले का भाग्य ही पलट गया। 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया, तो सरकार ने शत्रु संपत्तियों को जब्त कर लिया याने की ऐसी संपत्तियां जो किसी ऐसे व्यक्ति या देश की थीं जो देश के दुश्मन थे। इसमें न केवल चीनी जातीयता के भारतीय नागरिक शामिल थे, बल्कि साथ में वे भी जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए थे। वही अधिनियम 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लागू था।

मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी थे महमूदाबाद के पूर्व राजा

प्रवास करने वाले लोगों में से एक ‘मोहम्मद आमिर अहमद खान’ (Mohammad Amir Ahmed Khan) थे, जिन्होंने 1947 में भारत छोड़ दिया था और इराक चले गए। उन्होंने 1957 में पाकिस्तानी नागरिकता ले ली। ये शख्स और कोई नहीं बल्कि महमूदाबाद के पूर्व राजा, मोहम्मद खान के पिता और ‘मोहम्मद अली जिन्ना’ (Muhammad Ali Jinnah) के करीबी सहयोगी थे।

जब्त की गई संपत्तियों में लखनऊ के हजरतगंज स्थित बटलर पैलेस, महमूदाबाद हवेली, लॉरी बिल्डिंग और कोर्ट शामिल थे। ये सभी प्रमुख रियल एस्टेट होल्डिंग्स हैं, कोर्ट विशेष रूप से 200,000 वर्ग फुट में फैला एक विशाल बाज़ार है। यूपी में विशाल महमूदाबाद संपत्तियों को तब रक्षा नियमों के तहत “शत्रु संपत्ति” के रूप में जब्त कर लिया गया था। जब 1974 में लंदन में बूढ़े राजा की मृत्यु हो गई, तो उनके बेटे राजा मोहम्मद आमिर खान ने अपनी विरासत वापस पाने के लिए एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू की।

शत्रु संपत्ति के मामले में सबसे ज्यादा प्रापर्टी राजा महमूदाबाद की है लेकिन अब किले पर उनका मालिकाना हक खत्म हो गया। सारी शत्रु संपत्ति सरकारी कब्जे में आ गयी। मेहबूदाबाद किले को वास्तव में 1965 में सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था। सितंबर 2005 में एक ऐतिहासिक कानूनी फैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को महमूदाबाद संपत्तियों को रिहा करने और उन्हें वर्तमान राजा के हवाले करने का निर्देश दिया।

यह एक शानदार संरचना है जिसमें स्तंभयुक्त मेहराब हैं, जहां अभी भी कई कमरों में मूल फर्नीचर सुंदर विशाल फ़ारसी कालीनों के ऊपर सुशोभित हैं। जब राज्य अपने चरम पर था तब किले में जीवन कैसा रहा होगा, इसकी एक झलक अभी भी देखी जा सकती है। यहां रहने वाले परिवारों की संख्या बहुत कम हो गई है लेकिन वे सभी कई पीढ़ियों से शाही परिवार की सेवा में हैं।

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