भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 
India-Hindi

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गढ़े गए ये 8 प्रबल नारे जिन्होंने अनगिनत लोगों को सड़कों पर उतारा

प्रेरक और विवादास्पद , भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के ये 8 जुनूनी नारे भारत के राजनैतिक परिवेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं !

Aastha Singh

चाहे वह 'जय हिंद' हो या 'वंदे मातरम' या बिस्मिल की सरफ़रोशी की तमन्ना, आज मन में देशभक्ति और अपने क्रांतिवीरों की याद में लगाए जाने वाले अधिकांश लोकप्रिय देशभक्ति के नारों की उत्पत्ति भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में हुई थी।

75वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर, हम आपके लिए लाए हैं उन नारों की सूची जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं ने हमें उपहार में दिए हैं, जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया ताकि उनके साथी भारतीय एक स्वतंत्र राष्ट्र में रह सकें।

जय हिन्द - नेताजी सुभाष चंद्र बोस

जय हिन्द

बंगाल के नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) के सैनिकों के लिए 'जय हिंद' ने नारे को लोकप्रिय बनाया, जो द्वितीय विश्व युद्ध में नेताजी के सहयोगी जापान के साथ लड़े थे। हालांकि कुछ विवाद है कि यह वास्तव में जर्मनी में उनके सचिव द्वारा गढ़ा गया था। इस शब्द को स्वतंत्र भारत द्वारा राष्ट्रीय नारे के रूप में अपनाया गया था। जय हिंद पोस्टमार्क भी स्वतंत्र भारत का पहला स्मारक पोस्टमार्क था। यह 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता के दिन जारी किया गया था। आज, "जय हिंद" एक ऐसा अभिवादन है जिसे हम राजनीतिक बैठकों और यहां तक कि स्कूल के कार्यक्रमों में भी सुनते हैं।

"वन्दे मातरम" - बंकिम चंद्र चटर्जी

बंकिम चंद्र चटर्जी

"जय हिंद" की तरह, "वंदे मातरम" हमारे स्वतंत्रता आंदोलन का एक और नारा है जिसे हम आज कई सभाओं में सुनते हैं। इसका अनुवाद है, "माँ, मैं आपको नमन करता हूँ।" बंकिम चंद्र चटर्जी रचित यह गीत केवल एक गीत या नारे से अधिक एक शपथ थी जिसने स्वतंत्रता संग्राम में जोश और देशभक्ति का एक मज़बूत जज़्बा भरा। अपनी कविता में, चटर्जी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भारत को एक माँ के रूप में प्रस्तुत किया। 1905 और 1947 के बीच, लोगों ने पहले देशभक्ति के नारे के रूप में और फिर युद्ध के सिंघनाद के रूप में "वंदे मातरम" के नारे लगाए।

"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा" - बाल गंगांधर तिलक

बाल गंगांधर तिलक

"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा," बाल गंगाधर तिलक के और निडर शब्द थे। एक समाज सुधारक, वकील और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के पहले नेता, वह अपने समय के सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उन्होंने यह बयान बेलगाम में 1916 में दिया, जब उन्होंने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। उनके शब्दों ने उनके अनुयायियों में देशभक्ति की भावना जगा दी और अनगिनत अन्य लोगों को बिना पीछे हटे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

तुम मुझे खून दो मेँ तुम्हे आजादी दूंगा" - नेताजी सुभाष चंद्र बोस

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस के इन रक्तरंजित शब्दों को 1944 में बर्मा (अब म्यांमार) में भारतीय राष्ट्रीय सेना को संबोधित करते समय कहा और भारत के युवाओं से उनके साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा यह खून ही है जो दुश्मन द्वारा बहाए गए खून का बदला ले सकता है। यह खून ही है जो आजादी की कीमत चुका सकता है।" उनके शब्दों का उद्देश्य युवाओं को देश के लिए और अधिक सक्रिय रूप से लड़ने और भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान करने के लिए प्रेरित करना था।

करो या मरो - महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी

करो, या मरो, मोहनदास करमचंद गांधी के शब्द थे। भारत छोड़ो प्रस्ताव से एक दिन पहले 7 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक के बाद राष्ट्रपिता ने यह भाषण दिया, जिसमें भारत में ब्रिटिश शासन के तत्काल अंत की घोषणा की गई थी। उन्होंने लोगों से कहा कि वह उनकी मांगों को वायसराय के पास दृढ़ता से ले जाएंगे, यह कहते हुए, "मैं पूर्ण स्वतंत्रता से कम किसी भी चीज से संतुष्ट नहीं होने जा रहा हूं। हो सकता है कि वह साल्ट टैक्स आदि को समाप्त करने का प्रस्ताव दें। लेकिन मैं कहूंगा, 'स्वतंत्रता से कम कुछ नहीं'।

"यहाँ एक मंत्र है, एक छोटा, जो मैं आपको देता हूँ। इसे अपने दिलों पर छाप लीजिये, ताकि हर सांस में आप इसे अभिव्यक्ति दें। मंत्र है: 'करो या मरो'। हम या तो भारत को आजाद कर देंगे या कोशिश करते हुए मर जाएंगे; हम अपनी गुलामी की स्थिति को देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे।”

'इंकलाब जिंदाबाद' - मौलाना हसरत मोहानी

मौलाना हसरत मोहानी

'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा जबकि भगत सिंह द्वारा लोकप्रिय किया गया था, इसे 1921 में कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी और उर्दू कवि मौलाना हसरत मोहानी द्वारा गढ़ा गया था। मोहानी (1875-1951) का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के मोहन नामक शहर में हुआ था। इन जूनून से भरे शब्दों ने भारत के युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाई, उन्हें स्वतंत्र भारत की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। यह वाकई क्रांतिकारी नारा था क्योंकि इन्ही शब्दों के साथ सिंह ने 23 साल की छोटी उम्र में देश के लिए अपना जीवन दिया। 'इंकलाब जिंदाबाद' जिसका "क्रांति को जीवित रखें" था, यह एक युद्ध का सिंघनाद था जिसने अनगिनत लोगों को सड़कों पर उतारा।

'सरफ़रोशी की तमन्ना' - बिस्मिल अज़ीमाबादी

"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़तिल में है" पंजाब के अमृतसर में 1921 के जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी और कवि बिस्मिल अज़ीमाबादी द्वारा लिखी गई यह कविता की पहली दो पंक्तियाँ हैं। कविता में, 'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' पंक्ति दोहराई गई है, और देशभक्ति की फिल्मों और नाटकों में अक्सर इन दो पंक्तियों का उपयोग किया गया है।

इन पंक्तियों को एक अन्य क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल ने लोकप्रिय बनाया। इस कविता में एक दुश्मन से लड़ने की गहरी लालसा व्यक्त की गयी हैं और इसी लालसा को अपनी साथी स्वतंत्रता सेनानियों की आत्माओं को उठाने के लिए बिस्मिल ने दोहराया था,वे देश की आज़ादी के विद्रोह की कुछ प्रमुख घटनाओं का हिस्सा थे।

'भारत छोड़ो '- यूसुफ मेहरली

यूसुफ मेहरली

जबकि गांधी जी ने 'भारत छोड़ो' का नारा इस्तेमाल किया गया था, नारा एक समाजवादी और ट्रेड यूनियनवादी यूसुफ मेहरली द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था। कुछ साल पहले, 1928 में, मेहरली ने साइमन कमीशन का विरोध करने के लिए "साइमन गो बैक" का नारा भी गढ़ा था - हालांकि यह भारतीय संवैधानिक सुधार पर काम करने के लिए था।

To get all the latest content, download our mobile application. Available for both iOS & Android devices. 

Beyond the headlines: Gratitude for the silent women & men keeping Lucknow clean

Hindustan Hastshilp Mahotsav 2025 kicks off in Lucknow; Honey Singh to perform on Nov 22

This December, Lucknow is basically an endless party | 13 events you can’t miss!

Pet Parents in India! Checkout THIS ultimate flight guide for a stress-free journey with pets

Poet of 'gulaab' and 'inquilaab': Tracing the great Majaz Lakhnawi's life & his roots to Lucknow

SCROLL FOR NEXT