अवध की बहु बेग़म 
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अवध की बहु बेग़म - जानिये किस प्रकार नवाबी इतिहास में बहु बेग़म का अध्याय सबसे अनूठा और जटिल रहा

बहु बेग़म उस अवधि की राजनीतिक वास्तविकताओं से अच्छी तरह वाकिफ थीं और उन्होंने अवध की स्वतंत्रता को बनाए रखने की पूरी कोशिश की।

Aastha Singh

आम धारणा के विपरीत, पूर्व-आधुनिक भारतीय इतिहास में महिलाओं का बेहद सक्रीय योगदान था, उन्होंने कई राजनीतिक और सामाजिक कार्यों को दृढ़ता से सफलतापूर्वक किया। भले ही वे प्रत्यक्ष रूप से अपनी रणनीतियों को सामने रखना हो या ज़नाना घर के भीतर से काम करना, वे अपने समय की राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने में सक्षम थीं।

ऐसी महिलाओं का एक उल्लेखनीय उदाहरण अवध की बेग़म थीं, जिनका वर्चस्व अवध के इतिहास में लगभग 135 वर्षों तक फैला हुआ था।

आज हम आपको अवध की एक शाही बेग़म और 'नवाब शुजा-उद-दौला' की प्रमुख पत्नी 'बहू बेगम' के जीवन से रूबरू कराएँगे। बहु बेग़म की कहानी अवध राज्य की राजनीति पर उनके कुशल प्रशासन, अधिकारियों के नियंत्रण और रणनीतिक फैसलों को दर्शाती है। साथ ही यह भारतीय इतिहास में एक विशेष उथल-पुथल और असमंजस भरे दौर को भी दर्शाती है जब मुगलों का पतन हो रहा था और ईस्ट इंडियन कंपनी एक जमींदार शक्ति के रूप में उभर रही थी।

बहु बेग़म का नवाब शुजा-उद-दौला के सियासी जीवन में योगदान

बहू बेगम की शादी का दृश्य

बहू बेगम, नवाब मुतामन-उद-दौला मुहम्मद इशाक की एकमात्र वैध बेटी थी, जो मुगल सम्राट मोहम्मद शाह के दरबार में एक कुलीन थे। उनका नाम उम्मत-उज़ जोहरा था, लेकिन अवध के तीसरे नवाब वज़ीर, शुजा-उद-दौला से 1746 में निक़ाह के पश्चात वे बहू बेगम के नाम से प्रसिद्ध हुईं। शुजा-उद-दौला, सफदर जंग के पुत्र थे जो फैजाबाद शहर के निर्माता थे और वे 1764 में बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अपनी हार के लिए भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध हैं। जानकारों का कहना है उनका निक़ाह एक भव्य आयोजन था, जिसमें दो करोड़ की राशि खर्च की गयी थी जिसका वहन उनके भाई नजमुद दौला द्वारा किया गया था जिनकी अपनी कोई संतान नहीं थी।

बहु बेग़म

बहु बेगम को भेंट किए जाने वाले उपहारों में "एक सौ रुपये के एक हजार चांदी के कप थे"। इसके अलावा वह जागीरों दी गयीं थीं, जिससे नौ लाख रुपये की वार्षिक आय होती थी। शुजा-उद-दौला 1764 तक लखनऊ में रहे, लेकिन 1775 में अपनी मृत्यु तक फैजाबाद में रहे। 1764 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बक्सर की लड़ाई में हार के बाद बहु बेग़म की वित्तीय ताकत ने शुजा-उद-दौला के सिंहासन को बचा लिया। जिसमें मुख्य रूप से उनके दहेज शामिल थे और स्वतंत्र रूप से, वह अवध को कई प्रकार के नकारात्मक चंगुल से बचाने के लिए आर्थिक रूप से काफी मजबूत थीं। अपनी मृत्यु के बाद नवाब ने पूरे वित्तीय और अवध के ख़ज़ाने के भण्डार को बहू बेगम को सौंप दिया।

कैसे बदला बहु बेग़म ने अवध के तख़्त का रुख

फैजाबाद के पहले नवाब द्वारा निर्मित किला मुबारक।

पर्दा प्रथा के कारण एक बेग़म के रूप में उनपर लगी सीमाओं के बावजूद, वह एक कुशल प्रशासक थी। उन्होंने अपनी जागीरों को अधिकारियों के एक पदानुक्रम के माध्यम से शासित किया, जिनमें से कई के साथ उन्होंने अपनी उदारता के माध्यम से विश्वास के मजबूत संबंध बनाए। अपने बेटे आसफ-उद-दौला द्वारा राजधानी को लखनऊ स्थानांतरित करने के बाद, उन्होंने "व्यावहारिक रूप से फैजाबाद पर शासन किया।"

दुर्भाग्य से, शुजा-उद-दौला की मृत्यु के बाद, वह अपने बेटे, आसफ-उद-दौला और उसके दो मंत्रियों, मुर्तजा खान और हैदर बेग खान के साथ एक लंबे विवाद में आ गयीं। शुरुआत में तो बहू बेगम यहाँ एक माँ के रूप में कमज़ोर पड़ गयीं, लेकिन जब उनके बेटे ने बहु बेग़म की पौराणिक संपत्ति को नष्ट करना शुरू किया, जिसका अवध के इतिहास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। तब उन्होंने इंकार व्यक्त किया और उन्हें ये आभास हुआ की भावनाओं में बहकर उन्होंने शासन के सन्दर्भ में गलत फैसला ले लिया। उनका सौतेला बेटा सआदत अली, आसफ-उद-दौला की तुलना में बहुत अधिक सक्षम था । लेकिन बेग़म ने अपने पति पर प्रभाव डालकर आसफ-उद-दौला को अवध का चौथा नवाब वज़ीर घोषित किया।

बहू बेगम की मृत्यु और फैज़ाबाद का पतन

बहू बेगम की समाधि, फैजाबाद।

1797 में बहू बेगम ने अपने ही बेटे को खो दिया। बाद में 1798 में, उनके सौतेले बेटे सादात अली अवध के नवाब वज़ीर बन गए और बेगम के साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण संबंध प्रदर्शित किए। लेकिन बाद में पता चला कि उनके सौहार्दपूर्ण रवैये के पीछे एक छिपा मकसद था। सादात अली बहू बेगम की पूरी संपत्ति को हड़पने वाला था। बहू बेगम ने इस मंसूबे को समझा और अपने सौतेले बेटे से अपनी संपत्ति बचाने के लिए एक अवसर की तलाश करने लगीं। अंत में उन्हें अंग्रेज़ों से मदद मांगने के लिए विवश होना पड़ा।

बहू बेगम ने एक वसीयत बनाई और अपनी पूरी संपत्ति 70 लाख रुपये नकद और अतिरिक्त कीमती गहने अंग्रेजों की हिरासत में ट्रस्टी के रूप में छोड़ दी। उन्होंने अपने मंत्री दोराब अली खान को उनकी कब्र पर उनकी मृत्यु के बाद एक मकबरा बनाने के लिए 3 लाख सिक्का रुपये आवंटित किए। बेग़म उस अवधि की राजनीतिक वास्तविकताओं से अच्छी तरह वाकिफ थीं और उन्होंने अवध की स्वतंत्रता को बनाए रखने की पूरी कोशिश की। साथ ही, वह अपने और अपने लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए इन्हीं अधिकारियों से अपील करने से नहीं हिचकिचाती थी।

फैज़ाबाद में बहू बेगम का मकबरा

बेगम की मृत्यु बहुत ही शांतिपूर्ण थी। उन्होंने 88 साल का लंबा जीवन जिया। जवाहरबाग में उनका खूबसूरत मकबरा अवध में अपनी तरह की बेहतरीन इमारतों में से एक माना जाता है। 1815 में बहू बेगम की मृत्यु के बाद अवध के विलय से फैजाबाद का धीमा और स्थिर पतन शुरू हो गया। फैजाबाद की एक महान और न्यायपूर्वक शासिका के अंत के साथ फैजाबाद की नियति का पर्दा भी गिर गया।

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