फलों के राजा आम  
Uttar-Pradesh-Hindi

उत्तर प्रदेश की ये 8 आम की किस्में सदियों से शायरों से लेकर आम लोगों के दिलों पर राज कर रही हैं

इनके अलावा मुंज़र आमीन, नज़र पसंद, पान, रामकेला, पहाड़, जौहरी सफेदा इत्यादि कुछ दुर्लभ आम की किस्में हैं।

Aastha Singh

"आमों में बस दो खूबियां होनी चाहिए, एक मीठे हों और बहुत सारे हों।"

फलों के राजा के बारे में महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का यही कहना था। आज भी आमों से बेइंतहा मोहब्बत करने वालों की कमी नहीं है। एक आम प्रेमी के लिए, दुनिया इधर उधर हो सकती है, लेकिन जब गर्मी का मौसम होता है, तो उन्हें अपनी प्लेटों पर आम ज़रूर चाहिए। विभिन्न किस्मों में रसदार, गूदेदार, ताज़ा और स्वादिष्ट, आम खाना गर्मी के मौसम का पर्याय है। कच्चा हो या पका, मीठा हो या खट्टा, आम किसी भी तरह से अच्छा लगता है।

हमारे देश की सबसे बड़ी और लोकप्रिय मैंगो बेल्ट उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश में आम की कई बेल्ट हैं जैसे की मुख्य रूप से लखनऊ, सहारनपुर और मेरठ में दशहरी उगाया जाता है, और चौसा का उत्पादन पश्चिमी बेल्ट सहारनपुर और मेरठ में किया जाता है। उत्तर प्रदेश में हर साल 35 से 45 लाख मीट्रिक टन आम का उत्पादन होता है।

आईये जानते हैं उत्तर प्रदेश में उगने वाली आम की उन किस्मों के बारे में जिन्होंने सदियों से दुनिया को अपने साथ खुशबू एक रसभरे मिठास के रिश्ते में बाँध दिया है।

लखनऊ के गांव दशहरी में स्थित है मदर ऑफ़ मैंगो ट्री

दशहरी आम

फलों के राजा आम की दशहरी किस्म का स्वाद तो आपने जरूर चखा होगा। लखनऊ का मशहूर दशहरी आम अपने स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। ये आम लखनऊ के मलिहाबाद इलाके में पाए जाते हैं जहां बड़े पैमाने पर आम की खेती की जाती है। लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र में इस समय दशहरी आम 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लगाया जाता है। यहां से हर साल 20 लाख टन से ज़्यादा आम का उत्पादन होता है, जिसे देश ही नहीं विदेशों में भी भेजा जाता है।

दशहरी आम का नाम उसके गुणों या किस्मों के आधार पर नहीं, बल्कि दशहरी आम का नाम लखनऊ के एक गांव के नाम पर रखा गया है। लखनऊ काकोरी में दशहरी नाम का एक गांव है, जहां एक आम का पेड़ मौजूद है। जब इस पेड़ पर पहला फल आया तो गांव के नाम पर इसका नाम दशहरी पड़ा। आज इस वृक्ष की आयु 200 वर्ष से अधिक हो चुकी है। इस पेड़ को मदर ऑफ़ मैंगो ट्रीज़ भी कहा जाता है। इसे अब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक हेरिटेज वृक्ष के रूप में घोषित किया गया है।

बनारसी आम लंगड़ा स्वाद में मजबूत है

यदि किसी व्यक्ति के पैर में विकृति हो और उसे सीधा चलने में कठिनाई हो तो वह लंगड़ा कहलाता है, लेकिन लंगड़े आम में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है। बल्कि यही उसकी विशेषता है। इस आम के नामकरण के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। जानकारों के अनुसार लगभग 250 साल पहले बनारस के शिव मंदिर में एक पुजारी शारीरिक रूप से विकलांग था।

एक दिन एक साधु मंदिर में आया और उसने पुजारी को आम के दो पौधे दिए। जब पेड़ पर फल लगते हैं तो उसे भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। साधु ने पुजारी को यह आम किसी को देने से मना किया था, लेकिन काशी के राजा ने इस आम को पूरे शहर में फैला दिया। लंगड़े पुजारी के नाम पर इस आम को लंगड़ा आम कहा जाने लगा।

चौसा का रिश्ता हरदोई से है

चौसा आम

चौसा आम का स्वाद अनोखा होता है। यह जुलाई के महीने में दशहरी के बाद आम बाजार में आता है। इस आम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह स्वादहीन और विशेष मिठास वाला होता है। कहा जाता है कि 1539 में बिहार के चौसा में हुमायूँ से युद्ध जीतने के बाद शेरशाह सूरी ने इस आम का नाम चौसा रखा था, लेकिन कहा जाता है कि यह आम यूपी के हरदोई से संबंधित है। इसकी उत्पत्ति हरदोई में हुई, उसके बाद यह बिहार पहुंचा।

हुस्नआरा अपनी खूबसूरती के साथ-साथ अपने स्वाद के लिए भी मशहूर है

हुस्नआरा आम

लखनऊ के हुस्नआरा आम ने भी लोकप्रियता की नई ऊंचाइयां हासिल की हैं। यह आम अपनी खूबसूरती के साथ-साथ अपने स्वाद के लिए भी बहुत लोकप्रिय है। इस आम का छिलका सेब के छिलके जैसा होता है। जब यह आम कच्चा होता है तो हरा होता है और पकने पर आधा पीला, सुनहरा और लाल रंग का हो जाता है। इस आम को दुनिया का सबसे खूबसूरत आम कहा जाता है।

लखनऊवा सफेदा उनके लिए जो रसदार आम के शौक़ीन हैं

लखनऊवा सफेदा

लखनऊ के सफेदा ने अपने मुख्य रूप से मीठे और थोड़े खट्टे स्वाद के साथ इसको पसंद करने वालों की एक अलग ही तादात है। इस असाधारण प्रकार के आम में फाइबर की मात्रा कम होती है और फल के पूरी तरह पकने पर इसका हरा छिलका चमकीला पीला हो जाता है। लखनऊवा सफेदा का छिलका हलकी सफेदी लिए होता है। इसीलिए इसका नाम सफेदा पड़ गया।

रतौल आम है पश्चिमी यूपी की जान

रतौल आम

आम की एक छोटे आकार की किस्म, रतोल (या रतौल) एक समय पर भारत और पाकिस्तान के लिए एक फ्लैशपॉइंट बन गया। यूपी के बागपत जिले के रतौल गांव के नाम पर, यह आम की किस्म में एक विशिष्ट ख़ुश्बू और स्वाद होता है। जबकि यह आम देश के अन्य हिस्सों में व्यापक रूप से नहीं जाना जाता है, यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निवासियों के बीच बहुत पसंद किया जाता है। इसके दो भाई थे और उनमें से एक, अनवर, पाकिस्तान चला गया और अपने नाम पर इस किस्म का नाम रखा गया।

गोरखपुर के गौरजीत कम प्रसिद्ध लेकिन मिठास यादगार 

गौरजीत

गौरजीत एक कम प्रसिद्ध आम की किस्म है, जो गोरखपुर और आसपास के तराई क्षेत्र के निवासियों के लिए इसकी मिठास साल भर के लिए अविस्मरणीय रहती है। अन्य सभी प्रकारों से एक कदम आगे रहनी वाली यह किस्म, गौरजीत मई के मध्य में पक जाती है और जून के मध्य तक बाजार में उपलब्ध रहती है।

वाराणसी का मालदा है चटनी बनाने के लिए ज़बरदस्त

मालदा

उत्तर भारत में प्रसिद्ध प्रकार के आमों में, मालदा वाराणसी के लंगड़ा आम की एक किस्म है, जिसमें रेशे नहीं होते हैं। लेकिन इसका स्वाद मीठा-खट्टा जैसा होता है। इन दो गुणों के कारण, मालदा विभिन्न आम की चटनी बनाने के लिए सबसे उपयुक्त है, जिसे अक्सर गर्मियों में भोजन के साथ खाया जाता है।

इनके अलावा मुंज़र आमीन, नज़र पसंद,पान, रामकेला, पहाड़, जौहरी सफेदा इत्यादि कुछ दुर्लभ आम की किस्में हैं। सदियों से आमों में ये ख़ासियत रही है की वे सबको अपना दीवाना बना देते हैं। आम लोगों से लेकर शायरों तक कोई आम के प्रति अपने बेइंतहा इश्क को छिपा नहीं पाया।

मशहूर शायर अक़बर इलाहाबादी लिखते हैं - नाम कोई न यार का पैग़ाम भेजिए, इस फसल में जो भेजिए बस आम भेजिए।

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